तर्के लज़्ज़त में ही हक़ीक़ी लज़्ज़त होती है - मौलाना रज़ा हैदर



अहले मुसीबत के यहां खाना खाना जाहिलयत की अलामत है


मरने वाले के घर तीन दिन तक खाना भेजना सुन्नते फ़ातिमा स अ है


फ़ातिमा स अ का दुश्मन मोहम्मद मुस्तफ़ा स अ व का दुश्मन है कुरआन और इस्लाम का भी दुश्मन है


बुग़्ज़े अली और अक़्ल एक जगह इकट्ठा नहीं हो सकती


ज़िक्रे फ़ातिमा स अ  हिदायत का रास्ता है और हक़ व बातिल को पहचानने का ज़रीया भी है


बाराबंकी । अपनें आमाल से नहूसत हटायें तमाम नहूसतों से छुटकारा पायें । दर दर की ठोकरें न खायें दरे सय्यदा पर आएं अपनी आखेरत बनायें ।मरक़ज़े नूर फ़ातिमा स अ हैं। अल्लाह इन्सानों को अंधेरे से उजाले की तरफ़ लाता है । जो शैतान का पैरोकार हो जाता है रोशनी  छोड़कर अंधेरे की तरफ़ चला जाता है।यह बात मौलाना गुलाम अस्करी हाल में मजलिस ए चेहलुम बराये ईसाल ए सवाब मरहूम ज़हीर अली इब्ने सग़ीर अली को ख़िताब करते हुए आली जनाब मौलाना सैयद रज़ा हैदर साहब ने कही । मौलाना ने यह भी कहा कि कुफ़्र चाहे जितना ज़ोर आज़मा ले अल्लाह एक दिन पूरे आलम को दीने इस्लाम की रौशनी से रौशन कर देगा । हर शू इस्लाम ही इस्लाम नज़र आयेगा । ज़िक्रे फ़ातिमा स अ  हिदायत का रास्ता है और हक़ व बातिल को पहचानने का ज़रीया भी है । बुग़्ज़े अली और अक़्ल एक जगह इकट्ठा नहीं हो सकती । फ़ातिमा स अ का दुश्मन मोहम्मद मुस्तफ़ा स अ व का दुश्मन है कुरआन और इस्लाम का भी दुश्मन है । तर्के लज़्ज़त में ही हक़ीक़ी लज़्ज़त होती है  । अहले मुसीबत के यहां खाना खाना जाहिलयत की अलामत है । मरने वाले के घर तीन दिन तक खाना भेजना सुन्नते फ़ातिमा स अ है । आखिर में फ़ातिहा ज़हरा के मसायब पेश किये जिसे सुनकर सभी रोने लगे । मजलिस से पहले डा 0 रज़ा मौरानवीं  ने पढ़ा - नक़्शे सजदा और मातम के निशां ले आये हैं ।एक बख़्शिश के लिए दो मेहरबां ले आयें हैं। कशिश संडीलवी ने पढ़ा - ज़िन्दगी की बिसात पर अक्सर  , जो थे शातिर उन्हीं को मात हुई ।अजमल किन्तूरी ने पढ़ा - एक अंधेरा था मगर रौशन हुए चौदह चराग़ , किस कदर आसानियाँ हैं एक मुश्किल के लिये ।आरिज़ जरगांवीं ने पढ़ा - जो लश्कर को ख़ते शमशीरसे रोका नहीं होता , मुझे अब्बास की हैबत का अंदाज़ा नहीं होता । हाजी सरवर अली करबलाई ने पढ़ा - चाहते हो हर तरफ़ गर अम्न ही आए नज़र , काम लीजे सब्र से गुस्से को भाई रोकिये । आपसी झगड़ा सबब है क़ौम की तौहीन का , आपसी झगड़े भुलाकर अब बुराई रोकिये । मजलिस का आग़ाज़ दानिस रज़ा ने तिलावत ए कलाम ए इलाही से किया। बानिए मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया ।

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